भगवान श्री राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के ऐतिहासिक अनुष्ठान को गलगोटियास विश्वविद्यालय में बहुत ही दिव्य रूप से मनाया। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। सुनील गलगोटिया
भगवान श्री राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के ऐतिहासिक अनुष्ठान को गलगोटियास विश्वविद्यालय में बहुत ही दिव्य रूप से मनाया।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। सुनील गलगोटिया
शफी मौहम्मद सैफी
ग्रेटर नोएडा। अयोध्या में भगवान श्री रामलला में सोमवार को अपने जन्मस्थान पर बने भव्य और दिव्य मंदिर में विराजमान हुए। इस अवसर को और अविस्मरणीय बनाने के लिये पूरे भारत के साथ-साथ विदेशों में रहने वाले श्रद्धालुओं और भारत वंशियों ने भी एक महान उत्सव के रूप में मनाया। देश और दुनिया आज इन लम्हों की साक्षी बनी। ऐसा लग रहा था, मानो जैसे आज पूरी प्रकृति ही राम-मय हो गयी हो। इस पावन पर्व को गलगोटियास विश्वविद्यालय के प्रांगण में भी विद्यार्थियों और शिक्षकों ने मिलकर बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया। सभी ने मिलकर प्रातः काल में सबसे पहले सुन्दर काँड के पाठ का आयोजन किया और उसके उपरांत वेद मंत्रों की ऋचाओं से वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा हवन-यज्ञ का आयोजन किया गया। उसके बाद दिनभर विद्यार्थियों के द्वारा साँस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में भगवान श्री राम के जीवन पर आधारित अनेक प्रसंगों को भजनों के माध्यम से सुनाकर उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। शाम के समय में दीपोत्सव का भव्य कार्यक्रम रखा गया। अयोध्या में बने भगवान श्री राम के दिव्य मंदिर का एक बहुत ही ख़ूबसूरत मॉडल गलगोटियास विश्वविद्यालय परिसर में सजाया गया जो दिनभर सभी की आस्था का केंद्र बना रहा। गलगोटियास विश्वविद्यालय के चॉसलर सुनील गलगोटिया ने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और शिक्षकों को इस पावन पर्व की शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि श्री राम हमारे जीवन के आदर्श हैं। हमें सदैव मर्यादा में रहकर ही अपना जीवन जीना चाहिये। हमें आज इस पावन पर्व पर ये प्रतिज्ञा लेनी चाहिए कि हमें कभी भी किसी के कष्ट नहीं देना चाहिए बल्कि सदैव एक परोपकारी जीवन जीना चाहिये। और ज़रूरतमंदों की सहायता करनी चाहिए यह सच्ची मानवता है। विश्वविद्यालय के सीईओ डा० ध्रुव गलगोटिया ने कहा कि श्री राम हमारी आस्था और सनातन संस्कृति के प्रतीक हैं। वो हमारे आदर्श हैं। राम सबके हैं। वो जन जन के प्रिय हैं। उन्होंने किसी को भी कभी छोटा नहीं समझा। उन्होंने वन में रहने वाली एक आदिवासी भीलनी को भी माँ कहकर पुकारा और उसके झूठे बेर भी खाये। उन्होंने सदैव गुरू और माता पिता की आज्ञा का पालन किया। इन सब बातों के लिये चाहे उनको कितना भी बडा त्याग करना पडा। उन्होंने किया। आज की युवा पीढ़ी को इस बात की महत्ती आवश्यकता है कि वो भगवान राम के आदर्शों का अपने जीवन में अनुकरण करके अपने जीवन को एक आदर्श जीवन बनायें। आप सभी को इस पावन पर्व की एक बार पुनः बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।