Greater Noida

राष्ट्रचिंतना की सातवीं मासिक गोष्ठी, “सनातन सभ्यता, भारत और राजनीति” विषय पर  दिल्ली वर्ल्ड पब्लिक स्कूल में प्रो. बलवंत सिंह राजपूत की अध्यक्षता में हुई सम्पन्न।

राष्ट्रचिंतना की सातवीं मासिक गोष्ठी, “सनातन सभ्यता, भारत और राजनीति” विषय पर  दिल्ली वर्ल्ड पब्लिक स्कूल में प्रो. बलवंत सिंह राजपूत की अध्यक्षता में हुई सम्पन्न।
शफी मौहम्मद सैफी
ग्रेटर नोएडा। राष्ट्रचिंतना की सातवीं मासिक गोष्ठी, “सनातन सभ्यता, भारत और राजनीति” विषय पर आज दिल्ली वर्ल्ड पब्लिक स्कूल में प्रोफ बलवंत सिंह राजपूत की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। गोष्ठी का संचालन प्रोफ विवेक कुमार ने किया गोष्ठी में राष्ट्रचिंतना के अध्यक्ष प्रोफेसर बलवंत राजपूत  ने कहा कि सनातन के संदर्भ में अनेक अज्ञानी एवम अहंकारी राजनीतिज्ञों द्वारा अनर्गल व्यक्तव्य दिए जा रहे है । इन ईर्ष्याजनित मिथ्या प्रलापों  का चिरंतन एवम शाश्वत सनातन जीवन पद्धति और मौलिक दर्शन पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। फिर भी जन  साधारण के लिए अति सरल शब्दों में सनातन को समस्त विश्व के कल्याण एवम शांति के जीवन दर्शन के रूप में बताया जा सकता है जिसमे  सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामय और अंतरिक्ष से लेकर पृथ्वी, जल और औषधि की शांति की बात कही गई है। वसुधैव कुटुंबकम् की बात कही गई है। ऐसी परिकल्पना विश्व के किसी अन्य जीवन दर्शन में नहीं है। सनातन वैदिक धर्म है, चिरंतन एवम सास्वत है तथा इसका आधार अनेक  वैदिक ऋषियों की निरंतर  वैज्ञानिक शोध पर आधारित परंपराएं है। सरल शब्दों में सनातन का अर्थ गौ, गंगा एवम गायत्री की पूजा, अनहत नाद ( ॐ) को सदा ह्रदय में धारण रखना तथा पुनर्जन्म के सिद्धांत पर विश्वास है। हमारे सारे वैदिक दर्शन इन्ही सिद्धांतो को प्रतिपादित करते हैं।सनातन जीवन पद्धति वह है जिसमें चाहे उपासना का मार्ग कोई भी हो (ज्ञान मार्ग, भक्ति मार्ग अथवा कर्म योग) पर पूरा जीवन चार पुरूषार्थ ( धर्म, अर्थ , काम और मोक्ष) से संचालित होता है। जिसके अनुसार जब धर्म का नियंत्रण अर्थ और काम पर दृढ़ता से होता है तो व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी हो जाता है। विश्व के किसी भी अन्य जीवन दर्शन में धर्म ( पंथ नही) का कोई पर्यायवाची शब्द नहीं है और न ही धर्म की कोई सास्वत अवधारणा ही है। इसी प्रकार मोक्ष की कोई भी परिकल्पना किसी अन्य जीवन दर्शन में नहीं है। मोक्ष में परमात्मा से एकरूपता के घनीभूत परमानंद की अवधारणा केवल सनातन में ही है।जो अज्ञानी सनातन ( और उसके मानने वाले हिंदू) को समाप्त करने के अनर्गल प्रलाप करते हैं, वे जीभ से महासागर को सोखने की मूर्खता पूर्ण कल्पना करते हैं।सनातन संस्कृति से ही विश्व में शांति स्थापित हो सकती है और विश्व बंधुत्व स्थापित हो सकता है स्वामी सुशील  ,भृगु पीठाधीश्वर , आज की गोष्ठी में मुख्य वक्ता रहे। जिन्होंने भगवान राम के चरित्र को सारी दुनिया में प्रचारित प्रसारित करने में अपनी जिंदगी लगा दी। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व के मायने व्यक्ति को अपने परिवार को समझाने में समय लगाना चाहिए जैसे भारतीय संस्कृति का अनुभव स्वामी विवेकानंद जी ने विश्व को करवाया जब उनके पास टिकट के पैसे नहीं थे लेकिन आत्म बल था विश्वास था। उस समय पर भी इस्लाम और यहूदी धर्म के चलन के समय कुछ मिनट के अपने  वक्तव्य में अपनी संस्कृति की अमिट छाप छोड़ दी। उन्हीं को अपना आदर्श मानकर स्वामी सुशील जी ने भी मोरक्को में भारतीय सभ्यता संस्कृति का विस्तार से परिचय करवाया जहां चीन मिस्र मोरक्को के विशेषज्ञ मंच पर उपस्थित है वहां अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि भारत की जो जीवन पद्धति है वह हमारे अंतर्मन में हो जाए। संघ कहता है कि धर्म जाति वर्ण का भेद मिटा और अपने धर्म के साथ-साथ दूसरे धर्म का भी सम्मान करो ,यही हमारे सनातन की विशिष्ट पहचान है। आज हमारे शिशु मंदिर हर जगह नहीं है, दयानंद एंग्लो विद्यालय की संख्या भी कम होती जा रही है सनातन धर्म मंदिर कहीं-कहीं दिखाई देते हैं। परिवार में बच्चे अपने धर्मस्थल में कभी कभी ही जाते हैं। कर्ज लेकर विदेश में पढ़ते हैं वहीं रहते हैं, अपना मानसिक बल और धन बाहर ही खर्च करते हैं। संतान कम है, विदेश से वापस आना नहीं चाहते। इन सब समस्याओं का निवारण हमें अपने घर से ही करना पड़ेगा। एक अन्य गोष्ठी में असद मदनी के सानिध्य में स्वामी जी ने कहा कि अल्लाह और ॐ एक है, जब इस्लाम के मानने वाले आदम और हव्वा कहते हैं और हम मनु और शतरूपा तो हमें पता चलता है कि हर धर्म में सनातन का ही अंश है। सभी संस्कृति और धर्म में अग्नि की मान्यता है। जो भी देश पूर्व में अखंड भारत का हिस्सा थे वहां आज भी भारतीय सभ्यता संस्कृति के अंश दिखाई देते हैं। इस्लाम के मानने वाले बाहर कमाकर यहां लाते हैं ।मस्जिद में देते हैं, अपने घर में देते हैं। मंदिर के पुजारी को धर्म के कार्य करने के लिए कोई मानदेय नहीं दिया जाता लेकिन मस्जिद और चर्च में नमाज व प्रेयर करने वालों को सरकार मानदेय देती है , जो आज भी दी जा रही है, यह कहां तक सही है। स्वामी सुशील जी ने कहा कि मैं अपने जीवन में कभी माला नहीं जपता , राम चरित्र और रामचरितमानस को जन-जन तक पहुँचाना ही मेरे जीवन का उद्देश्य है।उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण को  इस्कॉन ने पूरे विश्व में पहुँचा दिया । स्वामी सुशील जी ने कहा कि थाईलैंड, कंबोडिया, साउथ कोरिया में भारतीय सनातनी परंपरा के अंश आज भी दिखाई देते हैं। वेस्ट इंडीज में लगभग 24 प्रतिशत भारतीय हैं और वह सब अपने भारतीय सभ्यता संस्कृति के प्रति आज भी जुड़े हुए हैं। लेकिन बड़ी विडंबना है कि भगवान राम के चरित्र को प्रचारित प्रसारित करने में भारतीय विश्वविद्यालय की उतनी रुचि नहीं होती।कैप्टन शशि भूषण त्यागी  ने अपने वक्तव्य में कहा कि ॐ सनातन का बीज मंत्र है। सकारात्मकता के साथ बोलने पर सभी के कल्याण का कारण है, जैसे शांति पाठ में हम सभी की भलाई की कामना करते हैं। उन्होंने मेजर जनरल जीडी बक्शी साहब की पुस्तकों का वर्णन किया और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के डॉक्टर ए एन चौधरी द्वारा सरस्वती नदी से संबंधित किए गए तथ्यात्मक शोध के बारे में प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे सरस्वती नदी का उद्गम हड़प्पा संस्कृति से भी प्राचीन है। भीम बैठका के कार्बन डेटिंग परीक्षण से पता चला कि वह 8000 वर्ष से भी पुरातन है। उन्होंने कहा कि कुछ  विधर्मी सोम और सोमरस को लेकर भी बहुत भ्रांतियां जानबूझकर फैलाते हैं। कैप्टन त्यागी  ने कहा कि समाज विषयवस्तु पर मांग करता है तो सरकार को भी ध्यान देना पड़ता है। उन्होंने कहा कि जब कुछ नहीं था तब भी सनातन था और हमें सनातनी प्रतीकों  को धारण करने पर गर्व होना चाहिए। भारत हिंदू राष्ट्र था, हिंदू राष्ट्र है, हिंदू राष्ट्र रहेगा और सरकार को चाहिए की बहुत जल्द इसकी घोषणा भी हो।
गोष्ठी में राष्ट्रचिंतना के उपाध्यक्ष राजेंद्र सोनी, संयुक्त सचिव मेजर निशा सिंह, सह व्यवस्था प्रमुख उमेश पांडे, कोषाध्यक्ष मेजर सुदर्शन, मीडिया प्रमुख  डॉ नीरज कौशिक, अरविन्द कुमार साहू, कैप्टन अजय पाल सिंह, डॉ बी के श्रीवास्तव, दीवान सिंह, रवेन्द्र पाल सिंह, उमेश ठाकुर, विजेंद्र सिंह, जूली शर्मा, कैप्टेन शशि भूषण, धर्मपाल भाटिया, भोला ठाकुर आदि गणमान्य प्रबुद्ध जन उपस्थित थे  |

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