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विश्व मलेरिया दिवस। विवैक्स मलेरिया के बढ़ते मामले चिंताजनक, डॉक्टरों की चेतावनी – बार-बार लौटने वाला संक्रमण हो सकता है खतरनाक

विश्व मलेरिया दिवस। विवैक्स मलेरिया के बढ़ते मामले चिंताजनक, डॉक्टरों की चेतावनी – बार-बार लौटने वाला संक्रमण हो सकता है खतरनाक

उत्तर भारत में मलेरिया फिर बना चिंता का विषय, डॉक्टरों के अनुसार 90 प्रतिशत से अधिक मामले विवैक्स मलेरिया के विशेषज्ञों ने बताया संक्रमण का प्रकार, उपचार की दिशा और बचाव के प्रभावी उपाय

शफी मौहम्मद सैफी

ग्रेटर नोएडा/लुधियाना: मलेरिया, जो भारत सहित कई देशों में एक मौसमी और जानलेवा बीमारी के रूप में फैला हुआ है, अब उत्तर भारत में फिर से चिंता का कारण बनता जा रहा है। विश्व मलेरिया दिवस (25 अप्रैल) के अवसर पर ग्रेटर नोएडा और लुधियाना के प्रमुख अस्पतालों के डॉक्टरों ने मलेरिया की वर्तमान स्थिति, इसके प्रकार – विशेषकर प्लास्मोडियम विवैक्स (पी. विवैक्स) और प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम (पी. फाल्सीपेरम) – इसके लक्षण, इलाज और बचाव के उपायों पर लोगों को जागरूक किया।

डॉक्टरों का कहना है कि पी. विवैक्स मलेरिया सामान्यतः हल्का बुखार देता है, परंतु इसके रोगाणु शरीर के यकृत (लीवर) में छिपे रह सकते हैं और कई महीनों बाद दोबारा सक्रिय होकर बीमारी को लौटा सकते हैं। यही कारण है कि यह संक्रमण बार-बार होने वाला होता है। दूसरी ओर, पी. फाल्सीपेरम मलेरिया अधिक गंभीर प्रकार का होता है, जो मस्तिष्क, गुर्दे और अन्य अंगों को प्रभावित कर सकता है और यदि समय पर इलाज न हो तो यह जानलेवा भी हो सकता है।

मलेरिया के लक्षणों में तेज़ बुखार, ठंड लगना, पसीना आना, सिरदर्द और थकान प्रमुख हैं। इलाज में देरी होने पर यह स्थिति गंभीर बन सकती है।फोर्टिस अस्पताल, ग्रेटर नोएडा की अतिरिक्त निदेशक (इंटरनल मेडिसिन) डॉ. प्रमिला रामनिस बैथा ने बताया, “पिछले एक वर्ष में हमारे अस्पताल में मलेरिया के लगभग 30 से 40 मामले सामने आए, जिनमें 90 प्रतिशत से अधिक पी. विवैक्स प्रकार के थे।” उन्होंने बताया कि मानसून और उसके बाद का समय मलेरिया के फैलाव के लिए सबसे संवेदनशील होता है। उन्होंने सलाह दी कि लोग पूरी बांह के कपड़े पहनें, मच्छर भगाने वाली क्रीम लगाएं और मच्छरदानी का उपयोग करें।मैश मानस अस्पताल, ग्रेटर नोएडा के वरिष्ठ सलाहकार चिकित्सक डॉ. नमन शर्मा ने बताया कि उनके अस्पताल में हाल ही में आए मलेरिया के अधिकतर मरीज पी. विवैक्स प्रकार के थे, जिनमें से लगभग 25 प्रतिशत को भर्ती करना पड़ा। उन्होंने बताया कि ग्रामीण और निम्न आय वाले क्षेत्रों में समय पर जांच न होने से मरीजों की हालत बिगड़ जाती है। डॉ. शर्मा ने कहा कि नालियों व गड्ढों में पानी जमा न होने दें, कूलर और पानी की टंकियों को हर दो दिन में साफ करें, और सूर्यास्त के बाद खिड़कियाँ बंद रखें।लुधियाना स्थित मैश प्रो-लाइफ अस्पताल के वरिष्ठ सलाहकार (इंटरनल मेडिसिन) डॉ. सुखप्रीत सिंह ने बताया कि पिछले 6 से 12 महीनों के दौरान उनके अस्पताल में मलेरिया के कुल 6 मामले सामने आए, जिनमें से 5 पी. विवैक्स और 1 पी. फाल्सीपेरम का था। उन्होंने बताया कि उनके बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) में बुखार के मरीजों में से केवल 5 प्रतिशत से भी कम में मलेरिया की आशंका होती है और पुष्ट मामले 1 प्रतिशत के आसपास होते हैं। डॉ. सिंह ने संतुलित आहार और जीवनशैली को भी इलाज में जरूरी बताया। उन्होंने कहा, “मरीज को विटामिन ‘सी’, लौह तत्व (आयरन) और प्रोटीन युक्त आहार देना चाहिए। अधिक पानी पिएं, पूरी नींद लें और बीमारी के दौरान शराब, चाय-कॉफी, तले हुए और जंक खाद्य पदार्थों से बचें, ताकि रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे।”तीनों विशेषज्ञों की राय है कि उत्तर भारत में मलेरिया का सबसे सामान्य प्रकार पी. विवैक्स है, जिसे अक्सर इसके हल्के लक्षणों के कारण अनदेखा कर दिया जाता है। लेकिन समय पर जांच और इलाज न होने पर यह भी गंभीर रूप ले सकता है।विश्व मलेरिया दिवस पर डॉक्टरों का स्पष्ट संदेश है कि जागरूकता, व्यक्तिगत सावधानी और सामूहिक सफाई ही मलेरिया पर नियंत्रण का मार्ग हैं। नागरिकों से अनुरोध है कि वे मच्छरों से बचाव के उपाय अपनाएं और अपने आसपास सफाई बनाए रखें, ताकि इस घातक बीमारी से बचा जा सके।

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