Bulandshahr

इल्ज़ाम न आ जाए परसतिश का बुतों की, यूँ हम ने तराशे हैं ख़ुदा और तरह के। बज़्मे खुलूस ओ अदब के तत्त्वधान में गांव अकबरपुर में शानदार महफिले में मुशायरा का हुआ आयोजन

इल्ज़ाम न आ जाए परसतिश का बुतों की, यूँ हम ने तराशे हैं ख़ुदा और तरह के।

बज़्मे खुलूस ओ अदब के तत्त्वधान में गांव अकबरपुर में शानदार महफिले में मुशायरा का हुआ आयोजन

बुलंदशहर (ज़ुबैर शाद) बुलन्दशहर की साहित्यिक संस्था बज़्मे खुलूस ओ अदब के तत्त्वधान में गांव अकबरपुर में शनिवार की देर शाम नासिर बेग मोमिन के निवास पर खुर्जा के प्रसिद्ध शायर, शायर अल जमील के काव्य संकलन ‘राहे सुख़न’ के विमोचन के अवसर पर शानदार महफ़िले मुशायरा का आयोजन किया गया। जिसमें बाहर के और स्थानीय शायरों ने अपना उम्दा कलाम पेश किया। काव्य संकलन राहे सुख़न का विमोचन अलीगढ़ के उस्ताद शायर डॉक्टर इलियास नवेद ग़ुन्नोरी व उर्दू अकादमी यूपी के पूर्व सदस्य नदीम अख़्तर ने संयुक्त रूप से किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. इलियास नवेद ने की और संचालन खतौली से पधारे अमजद आतिश ने किया। नदीम अख़्तर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ तिलावत कलाम ए पाक से हुआ। कार्यक्रम के संयोजक मक़सूद जालिब ने नाते पाक से मुशायरे का आग़ाज़ किया। बज़्मे ख़ुलूस ओ अदब की ओर से इस अवसर पर कई काव्य संकलनों के रचयिता डॉ. हुसैन अहमद आज़म को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया। बुज़ुर्ग उस्ताद शायर डॉ. मुबीन रहबर को रहबरे अदब के ख़िताब से नवाज़ा गया। उस्ताद शायर इलियास नवेद ग़ुन्नोरी को आबरू ऐ उर्दू अवार्ड से नवाज़ा गया । शायर अल जमील को पासबाने ग़ज़ल अवार्ड दिया गया। सिकंदराबाद के उस्ताद शायर अमानुल्लाह ख़ालिद को वक़ार ऐ अदब, इरशाद बेताब को नूरे अदब, अमजद आतिश को पासबाने अदब, ताहिर सऊद को आईना ऐ अदब और पत्रकार ज़ुबैर शाद को फ़ख़रे सहाफ़त के ख़िताब से नवाज़ा गया।
मुशायरे में पसंद किये गए शायरों का संक्षिप्त कलाम पाठकों की सेवा में प्रस्तुत है।

शकील सहर एटवी ने माँ पर कविता पाठ कर भाव विभोर कर दिया- किस क़दर पाक है मासूम है रिश्ता माँ का। ऐसे रिश्ते को निभाने में मज़ा आता है।
डाॅ. इलियास नवेद गुन्नौरी ने यूँ पढ़ा कि- ज़बां का क़त्ल है वाजिब, दहन के मक़तल में। हमारी ख़ामशी, उमरे तवील चाहती है। अलीगढ़ से पधारे बाबर इलियास ने पढ़ा कि निगाह भर के बस इक बार उस को देखा था। फिर उसके बाद नज़र सारे मंज़रों से गई। आयोजक ऐन मीम कौसर ने पढ़ा कि ऐ मेरी दीवानगी देदे मेरे घर का पता। दस्तकें देते हुए हाथों में छाले हो गए। डाॅ. हुसैन अहमद आज़म ने पढ़ा कि
वो ही बताएगा सावन में घर जले कैसे। जो गीली लकड़ी जलाने के फ़न में माहिर है। “राहे सुखन” के रचियता शायर अल जमील ने पढ़ा कि शायर सजाऊँ कैसे तबस्सुम लबों पे मैं। है कायनाते रूह का मंज़र लहू लुहान। संयोजक मक़सूद जालिब ने पढ़ा कि- किसी ग़रीब की जो बद दुआ से बच जाता। यक़ीन है वो अज़ाबे ख़ुदा से बच जाता। संचालक अमजद आतिश ने कहा कि आज वो शख़्स भी दुनिया को तेरी छोड़ चला। वो जो वो था ना वो सदमों का तेरे मारा हुआ। स्वागत समिति के अध्यक्ष मोमिन अकबरपुरी ने ये शेर पढ़ कर महफ़िल में रंग जमा दिया- आँसुओं तुम हो किस काम के, जाने वाले को रोका नहीं। किरण प्रभा ने पढ़ा कि जो इक बार मुझसे कहो तो सही तुम।

कसम से तुम्हारा नगर छोड़ दूँगी। अमान उल्लाह ख़ालिद ने यूँ पढ़ा कि इल्ज़ाम न आ जाए परसतिश का बुतों की, यूँ हम ने तराशे हैं ख़ुदा और तरह के। फहीम कमालपुरी ने पढ़ा कि दोस्तो मेरी उन से इस लिए नहीं बनती, प्यार के वो दुश्मन हैं मुझको प्यार प्यारा है। ताहिर सऊद किरतपुरी ने पढ़ा कि ऐसे इक साँप से इस बार पड़ा है पाला, आस्तीं मिल न सकी उसको तो दिल ढूँढ लिया। इरशाद बेताब एडवोकेट ने पढ़ा कि फूल खुश्बू रंग हिना, सब बेकार हैं तेरे बिना। इरफ़ान तालिब सिकंदराबादी ने पढ़ा कि हमारा मस’अला ये है संभलना ही नहीं आता, ख़ताओं पर ख़ताएँ कीं, नहीं सीखा ख़ताओं से। वाहिद अनपढ़ स्यानावी ने पढ़ा कि राम भी, रहीम भी मिल जायेंगे, धर्म की ऐनक हटा कर देखिये। डाॅ. असलम बुलंदशहरी कहते हैं कि जहन्नुम में अपना वो घर ढूँढते हैं, जो कम नापते हैं, जो कम तौलते हैं। लियाक़त कमालपुरी कहते हैं कि हमारे डूबने का फ़क़त सब अफ़सोस करते हैं, बड़ी हैरत से देखें हम, सहारा कौन देता है। अनवर ग़ज़ियाबादी ने पढ़ा कि सब भी बिक जाएं अगर घर के पुराने बर्तन, आप चिंता न करें जश्न मनायें जाएं।हनीफ आरज़ू ने पढ़ा कि साया ए दीवार के मोहताज हैं अहले खिरद, हम जुनूँ परवर लगा लेते हैं बिस्तर धूप में। ग़ुफ़रान राशिद ने कहा कि ले आये वो पत्थरों से पानी निचोड़ के, जिन की समझ में आ गई दारो रसन की बात। अशोक साहिब ने पढ़ा कि सजा कर रखी है बड़ों की निशानी, लगाकर नये घर में चौखट पुरानी। मंसूर अदब पहासूवी ने कहा कि आसमानों से भी ऊँची ये ज़मीं लगती है, जब भी सज्दे के लिए इस पे जबीं लगती है।इनके अलावा फ़रहाद स्यानवी आदि ने भी अपना कलाम पढ़ा।इस अवसर पर जमाल अब्दुल नासिर, हाफ़िज़ ज़ाहिद अंसारी, आस मौहम्मद क़ुरैशी, तहाव्वुर ख़ान, मआज़ एडवोकेट, राशिद शेख एडवोकेट, मईनुद्दीन, नफ़ीस, रिज़वान शाह आदि मौजूद रहे।

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