यथार्थ नोएडा एक्सटेंशन में बच्चों के विकास और ऑटिज़्म की शुरुआती पहचान पर हुई विशेष कार्यशाला
यथार्थ नोएडा एक्सटेंशन में बच्चों के विकास और ऑटिज़्म की शुरुआती पहचान पर हुई विशेष कार्यशाला
ऑटिज़्म के बढ़ते संकेत, कारण और वैज्ञानिक मूल्यांकन पर विशेषज्ञों की गहन चर्चा
तीन दिवसीय प्रशिक्षण में चिकित्सकों को बेले 4, आईएसएए और वीएसएमएस पर हैंड्स ऑन ट्रेनिंग

नोएडा एक्सटेंशन।आजकल बदलती जीवनशैली, बढ़ता स्क्रीन टाइम, सीमित सामाजिक संपर्क और न के बराबर आउटडोर गतिविधियों के कारण बच्चों में विकास संबंधी चुनौतियाँ पहले की तुलना में कहीं अधिक दिखाई देने लगी हैं। विशेषज्ञों के अनुसार ऑटिज़्म तब सामने आता है जब बच्चे का सामाजिक संवाद, भाषा विकास, प्रतिक्रिया क्षमता और व्यवहार उनकी आयु के हिसाब से विकसित नहीं हो पाते। इसके शुरुआती लक्षणों में नाम पुकारने पर प्रतिक्रिया न देना, आई कॉन्टैक्ट कम होना, बहुत कम बातचीत, एक ही चीज़ को बार बार करना, तेज आवाज या किसी टेक्सचर से परेशानी, कम सामाजिक जुड़ाव और भाषा में देरी जैसे संकेत शामिल होते हैं। इन महत्वपूर्ण बदलावों को समय रहते पहचानना बेहद ज़रूरी है, और इसी लक्ष्य के लिए यथार्थ सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के चाइल्ड डेवलपमेंट सेंटर ने इस विषय पर तीन दिवसीय विशेष कार्यशाला का आयोजन किया। विभागाध्यक्ष और डेवलपमेंटल पीडियाट्रिशन डॉ स्वाति छाबड़ा ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में ओपीडी में विकास में देरी का सामना करने वाले बच्चों की संख्या साफ़ तौर पर बढ़ी है। डेढ़ वर्ष से चार वर्ष का आयु वर्ग में सबसे ज़्यादा असर होता है, जहाँ भाषा के विकास में देरी, कम प्रतिक्रिया, ऐक्टिविटीज़ में बहुत सीमित हिस्सेदारी और शुरुआती व्यवहारगत बदलाव साफ दिखाई देते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मोटर माइलस्टोन छूटना और प्रतिक्रिया देने में कमी जैसे लक्षण अब पहले से ज्यादा देखने में आ रहे हैं, जो चिंताजनक है। सीनियर क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट तनुश्री भार्गव ने बताया कि ज़्यादातर माता-पिता स्पीच में देरी की समस्या लेकर आते हैं, लेकिन मूल्यांकन में पता चलता है कि दिक्कत सिर्फ भाषा विकास तक सीमित नहीं होती। बच्चे अक्सर आई कॉन्टैक्ट कम करते हैं, सामाजिक रूप से अलग दिखते हैं, कुछ आवाजों या टेक्सचर से असहज होते हैं, या दोहराव वाले व्यवहार करते हैं। उन्होंने कहा कि माता-पिता बारह से चौबीस महीने की उम्र में बदलाव महसूस जरूर करते हैं, लेकिन ‘बच्चे अलग तरह से बढ़ते हैं’ जैसी धारणाओं के कारण कई परिवार संकेतों को नज़रअंदाज कर देते हैं, जिससे शुरुआती हस्तक्षेप का समय निकल जाता है।डॉ छाबड़ा के अनुसार पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में ऑटिज़्म से जुड़े संकेतों की बढ़ोतरी में स्क्रीन टाइम, कम सामाजिक मेलजोल और तेज रफ्तार शहरी जीवनशैली प्रमुख कारणों में शामिल हैं।कार्यशाला में बेले 4, इंडियन स्केल फॉर असेसमेंट ऑफ ऑटिज़्म और वीएसएमएस जैसे वैज्ञानिक मूल्यांकन उपकरणों का विस्तृत व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण देने वाली विशेषज्ञों में देश की प्रमुख बेले 4 प्रशिक्षक डॉ निधि गुप्ता, आईएसएए विशेषज्ञ डॉ सरोज आर्या और वीएसएमएस व डिसएबिलिटी मूल्यांकन की वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ सुनीता देवी शामिल रहीं। कार्यक्रम में बाल रोग विशेषज्ञों, डेवलपमेंटल विशेषज्ञों, पीडियाट्रिक रेज़िडेंट्स और आरसीआई पंजीकृत क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट्स ने हिस्सा लिया। तनुश्री भार्गव ने एक केस स्टडी साझा करते हुए बताया कि शुरुआती हस्तक्षेप से बच्चों में उल्लेखनीय सुधार की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। अंत में डॉ स्वाति छाबड़ा ने संदेश दिया कि माता-पिता की जागरूकता सबसे बड़ा साधन है और संदेह होने पर तुरंत मूल्यांकन कराना ही बच्चे के उज्जवल भविष्य की दिशा में पहला कदम है।



