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“राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका” पर विचार गोष्ठी आयोजित

“राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका” पर विचार गोष्ठी आयोजित

ग्रेटर नोएडा।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क विभाग की , नोएडा द्वारा शारदा विश्वविद्यालय के ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ऑडिटोरियम में “राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका” पर एक भव्य विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी का उद्देश्य राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका पर गहन चर्चा करना था। विशिष्ट अतिथियों ने कार्यक्रम का विधिवत प्रारंभ मां भारती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलन द्वारा किया ।
इस कार्यक्रम में शहर के प्रमुख शिक्षाविद, समाजसेवी, शोधकर्ता और शिक्षक वर्ग के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में प्रफुल्ल केतकर, संपादक (ऑर्गेनाइजर), ने शिक्षकों की राष्ट्र निर्माण में भूमिका को विस्तार से बताया। शिक्षक विधार्थी के मन को छूते हुए उसे देशभक्त, अनुशासित व सेवाभावी भूमिका की ओर प्रेरित करें।ज्ञान के प्रकाश को प्रकट करते शिक्षक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के पोषक बनें। हम स्वाधीन हुए और स्वतंत्रता की यात्रा जारी रखते हुए विद्यार्थियों को समझाएं भारतवर्ष में सिकंदर पोरस के हाथों पराजित होकर गया।ऐसे अनेकों कथानक सुधारने और मिथ्या कथन मिटाने आवश्यक हैं। हमारी राष्ट्रचेतना जीवंत बनी रहे। शिक्षा के माध्यम से राष्ट्रीय दृष्टि का पुनः राष्ट्रीय करण नितांत आवश्यक है।कार्यक्रम के अध्यक्ष, वाई. के. गुप्ता, प्रति कुलाधिपति,शारदा विश्वविद्यालय, ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शिक्षक समाज के सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीयता, भारतीय संस्कृति,मातृभाषा का सम्मान करते हुए राष्ट्र आराधना में शिक्षक महती भूमिका निभाएं।विशिष्ट अतिथि वेदपाल, प्रांत सह संपर्क प्रमुख (मेरठ प्रांत), ने इस अवसर पर कहा कि वर्तमान समय में शिक्षकों का योगदान केवल शैक्षणिक क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि वे छात्रों में समाज की बेहतरी के लिए काम करने की भावना को भी प्रोत्साहित करते हैं। भारतवर्ष शाश्वत राष्ट्र है,उसे गौरव दिलवाना,मूल्यपरक प्रयासों द्वारा परम वैभव तक का मार्ग सुगम करना ध्येय हो।शिक्षक शिक्षण करें,केवल जीविका उपार्जन में ही ना उलझे रहें।गोष्ठी के समापन में शिक्षकों की महत्ता पर जोर देते हुए यह कहा गया कि शिक्षक समाज और राष्ट्र के वास्तविक निर्माता होते हैं, और उनके योगदान को सदैव सराहा जाना चाहिए।

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