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गलगोटिया विश्वविद्यालय में ‘वंदे मातरम’ को बताया आत्मा का स्वर।महेश शर्मा

गलगोटिया विश्वविद्यालय में ‘वंदे मातरम’ को बताया आत्मा का स्वर।महेश शर्मा

ग्रेटर नोएडा। गलगोटिया विश्वविद्यालय में राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ की रचना के 150 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर एक भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह आयोजन राष्ट्रगीत के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के योगदान, ‘वंदे मातरम’ के ऐतिहासिक महत्व तथा उसकी राष्ट्रीय चेतना को समर्पित रहा। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सांसद गौतम बुद्ध नगर महेश शर्मा ने कहा कि “वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि यह भारत की आत्मा का स्वर है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस गीत ने देशवासियों को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया और आज भी यह युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।” उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे राष्ट्रगीत और राष्ट्रीय प्रतीकों के मूल भाव को समझें और अपने आचरण में उतारें।कार्यक्रम की शुरुआत ‘वंदे मातरम’ के सामूहिक उद्घोष से हुई, जिससे पूरा वातावरण देशभक्ति से ओत-प्रोत हो गया। इसके पश्चात ज्ञानेश्वरी संस्थान के बच्चों द्वारा गणेश वंदना प्रस्तुत की गई, वहीं सरस्वती वंदना के माध्यम से ज्ञान और संस्कृति का संदेश दिया गया। बागेश्वरी संस्थान के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत तबला वादन ने शास्त्रीय संगीत की लयात्मक शक्ति को मंच पर साकार किया। वैशाली कला केंद्र के विद्यार्थियों ने ओडिसी नृत्य शैली में ‘वंदे मातरम’ की भावपूर्ण प्रस्तुति देकर दर्शकों को भावविभोर कर दिया। प्रख्यात कथक नृत्यांगना डॉ. कल्पना भूषण की प्रस्तुति कार्यक्रम का विशेष आकर्षण रही, जिसमें भाव, लय और अभिव्यक्ति के माध्यम से राष्ट्रप्रेम की सशक्त झलक देखने को मिली।

इस अवसर पर डॉ. ध्रुव गलगोटिया ने कहा कि “‘वंदे मातरम’ भारत की सांस्कृतिक आत्मा और राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है। यह गीत विभिन्न भाषाओं और सांस्कृतिक विभिन्नता के बावजूद हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और भविष्य के लिए विकसित भारत की ओर ले जाता है। गलगोटिया विश्वविद्यालय का प्रयास है कि विद्यार्थी शिक्षा के साथ संस्कार और राष्ट्रबोध को भी आत्मसात करें।”कार्यक्रम में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए शैलेन्द्र भाटिया, एसीईओ, यमुना प्राधिकरण ने कहा कि ‘वंदे मातरम’ भारत की सांस्कृतिक चेतना का मूल है और युवाओं को इसे केवल स्मरण ही नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों के रूप में अपनाना चाहिए। वहीं राजा इकबाल सिंह, महापौर ने कहा कि आज के युवाओं को आधुनिक शिक्षा के साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत से भी गहराई से जुड़ने की आवश्यकता है। ऐसे आयोजन राष्ट्रप्रेम, अनुशासन और सामाजिक चेतना को मजबूत करते हैं। कार्यक्रम में प्रशासनिक अधिकारियों, शिक्षाविदों और बड़ी संख्या में विद्यार्थियों की उपस्थिति रही।

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