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दो नन्हे दिल, दो बड़ी लड़ाइयाँ, और एक जीवनदायी परिणाम, यथार्थ अस्पताल में । 20 दिन के नवजात और 7 साल के बच्चे में किए गए जीवन रक्षक हृदय ऑपरेशन । डर, भरोसे और रिकवरी की कहानी, डॉक्टरों और माता-पिता की ज़ुबानी

दो नन्हे दिल, दो बड़ी लड़ाइयाँ, और एक जीवनदायी परिणाम, यथार्थ अस्पताल में

20 दिन के नवजात और 7 साल के बच्चे में किए गए जीवन रक्षक हृदय ऑपरेशन

डर, भरोसे और रिकवरी की कहानी, डॉक्टरों और माता-पिता की ज़ुबानी

ग्रेटर नोएडा।यथार्थ सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, ग्रेटर नोएडा में शुक्रवार को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में दो जटिल बाल हृदय रोग मामलों की क्लीनिकल जानकारी साझा की गई। इस दौरान डॉक्टरों, देखभाल टीम और मीडिया प्रतिनिधियों ने जाना कि किस तरह समय पर किए गए जीवन बचाने वाले हृदय ऑपरेशनों ने एक 20 दिन के नवजात और एक 7 वर्ष के बच्चे की जिंदगी की दिशा बदल दी। इनसे पता चलता है कि तकनीकी रूप से बेहतरीन माहौल में भी चिकित्सा व्यवस्था के मानवीय गुण बने रहते हैं। ये सामान्य सर्जरी नहीं थीं। ये बेहद जोखिम भरे, सटीक समय पर किए गए प्रयास थे, जहां हर घंटे की अहमियत अमूल्य थी और यह बात वहां मौजूद हर व्यक्ति महसूस कर सकता था।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉ. वीरेश महाजन, चेयरमैन, पीडियाट्रिक कार्डियक साइंसेज, डॉ. वेद प्रकाश, डायरेक्टर एवं विभागाध्यक्ष, सीटीवीएस, डॉ. सुनील कुमार बलियान, सीनियर कंसल्टेंट, सीओओ एवं फैसिलिटी डायरेक्टर, और अमित सिंह, सीईओ यथार्थ ग्रुप ने बात की। सभी ने मिलकर मीडिया को इन मामलों की क्लीनिकल यात्रा, फैसले की पूरी प्रक्रिया और बच्चों के दिल की देखभाल से जुड़ी उन लंबी रातों के बारे में बताया।पहला मामला एक नवजात बालक का था, जिसे जन्म के कुछ ही दिनों बाद सांस की गंभीर तकलीफ हुई और त्वचा नीली पड़नी शुरू हो गई थी। तीन किलो से भी कम वजन वाले इस बच्चे में डी-ट्रांसपोज़ीशन ऑफ द ग्रेट आर्टरीज नाम के जन्मजात हृदय रोग का पता चला, जिसमें हृदय की मुख्य धमनियाँ गलत तरीके से जुड़ी होती हैं और शरीर में ऑक्सीजन वाला खून ठीक से नहीं पहुंच पाता।डॉ. वीरेश महाजन ने बताया कि ऐसे मामलों में समय पर इलाज ही जीवन बचाने का एकमात्र रास्ता होता है। उन्होंने कहा, “बच्चा बहुत छोटा और नाजुक था, लेकिन बीमारी साफ थी। बिना सर्जरी के परिणाम बहुत खराब हो सकते थे। इस मामले में समय सबसे बेशकीमती था और देरी जोखिम को काफी बढ़ा देती।” बच्चे के पिता को पूरी स्थिति समझाने और उच्च जोखिम समझाकर उसकी सहमति लेने के बाद टीम ने आर्टेरियल स्विच ऑपरेशन किया। सर्जरी जटिल थी और इसके बाद वेंटिलेटर सपोर्ट व गहन निगरानी की जरूरत पड़ी। फेफड़ों में जकड़न जैसी अपेक्षित समस्याएं आईं, जिनका इलाज सांस की थेरेपी, दवाओं और धीरे-धीरे ऑक्सीजन सपोर्ट को भी कम करने से किया गया। अगले कुछ दिनों में बच्चे की हालत लगातार बेहतर होती गई। हृदय के कार्य करने की क्षमता और ऑक्सीजन का स्तर स्थिर रहा, दूध पीना सुधरा और अंततः बच्चे को बिना ऑक्सीजन सपोर्ट के स्थिर हालत में छुट्टी दे दी गई।

दूसरा मामला एक 7 वर्ष के बच्चे का था, जो सिंगल वेंट्रिकल फिजियोलॉजी से जुड़ी सायनोटिक जन्मजात हृदय बीमारी के साथ रह रहा था। पहले एक पेलिएटिव सर्जरी हो चुकी थी, लेकिन अब थकान बढ़ने और ऑक्सीजन की कमी के लक्षण गहराने लगे थे, जिससे आगे की सर्जरी जरूरी हो गई। डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि ऐसे बच्चों को समय-समय पर कई चरणों में सर्जरी की जरूरत होती है। उन्होंने कहा, “जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है, शरीर की जरूरतें बदलती हैं। ऐसे में अगला सर्जिकल कदम बहुत अहम हो जाता है, ताकि लंबे समय तक स्थिरता रहे और बेहतर जीवन मिल सके।”पूरी जांच और कार्डिएक इमेजिंग के बाद सर्जरी की योजना बनाई गई। बालक की सामान्य बेहोशी के दौरान की गई इस सर्जरी के बाद कड़ी निगरानी, ख़ून की व्यवस्था और धीरे-धीरे सांस की रिकवरी हुई। बच्चे की रिकवरी काफी तेजी से हुई, जल्द ही वेंटिलेटर से हटाया गया और थोड़े समय में ऑक्सीजन सपोर्ट भी बंद कर दिया गया। सर्जरी के बाद जांच में हृदय की स्थिति स्थिर पाई गई और ऑक्सीजन स्तर संतोषजनक रहा। बच्चा सक्रिय अवस्था में, ठीक से भोजन करते हुए बिना ऑक्सीजन सपोर्ट के घर भेजा गया। माता-पिता को डिस्चार्ज के बाद की देखभाल और फॉलोअप के बारे में विस्तार से समझाया गया।इस अवसर पर डॉ. वीरेश महाजन ने कहा, “जब कोई नवजात सांस के लिए जूझता हुआ, नीला पड़ता हुआ, तीन किलो से भी कम वजन में हमारे पास आता है, तब विभाग और पद की बातें पीछे छूट जाती हैं। तब सिर्फ मिनटों और टीमवर्क की अहमियत रह जाती है। ये सर्जरी चुनौतीपूर्ण थीं, लेकिन हमारी पूरी टीम के लिए बेहद प्रेरक भी।”

डॉ. वेद प्रकाश ने कहा, “बाल हृदय सर्जरी में सटीकता के साथ सही समय सबसे जरूरी होता है। इन दोनों मामलों में अगर देरी होती, तो नतीजे बिल्कुल अलग हो सकते थे। बच्चों को ठीक होते, स्थिर होते और स्वस्थ हालत में घर जाते देखना ही हमारी असली कमाई है।”

सीओओ एवं फैसिलिटी डायरेक्टर डॉ. सुनील कुमार बलियान ने कहा, “बाल हृदय देखभाल में सफलता सिर्फ डॉक्टरों की विशेषज्ञता से नहीं, बल्कि तैयारी, संसाधनों और बेहतरीन तालमेल से मिलती है। ये दोनों मामले बेहद नाजुक थे, जहां हर फैसला सही समय पर लेना जरूरी था। हमारी डॉक्टर, नर्स और सपोर्ट टीम ने मिलकर यह सुनिश्चित किया कि दोनों बच्चों को सही वक्त पर सर्वोत्तम इलाज मिले।”यथार्थ ग्रुप के सीईओ श्री अमित सिंह ने कहा, “जीवन की ये घटनाएं स्वास्थ्य सेवा के असली उद्देश्य को दिखाती हैं, जब हालात सबसे मुश्किल हों, तब भी जीवन बचाना ही लक्ष्य है। यथार्थ में हम उन्नत बाल हृदय सेवाओं को लगातार मजबूत कर रहे हैं, ताकि परिवारों को गंभीर इलाज के लिए एनसीआर से बाहर न जाना पड़े।”

बच्चों के माता-पिता ने भावुक होते हुए अपनी बात रखी। एक अभिभावक ने कहा, “हम बहुत डरे हुए थे। हमें चिकित्सा के तकनीकी शब्द समझ में नहीं आते थे, जब तक हमें भरोसा नहीं हो गया, लेकिन डॉक्टरों ने हमें बहुत अच्छी तरह से समझाया। आज हमारा बच्चा जीवित है, और हमारे लिए यही सबसे बड़ी बात है।” दूसरे अभिभावक ने बस इतना कहा, “उन दिनों यह अस्पताल हमारा घर बन गया था। यहां सभी ने हमारा लगातार बहुत अच्छी तरह से ध्यान रखा।”

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